
प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारतीय संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण केंद्र है। यह शहर गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर स्थित है, जिसे “त्रिवेणी संगम” के नाम से जाना जाता है। यह स्थान आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अद्वितीय है। प्रयागराज का नाम “प्रयाग” का अर्थ है “यज्ञ का स्थान,” जो इसकी धार्मिक महत्ता को दर्शाता है।

प्राचीन इतिहास
प्रयागराज का उल्लेख वेदों और पुराणों में “प्रयाग” के रूप में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा ने यहां सृष्टि की रचना के बाद पहला यज्ञ किया था। मौर्य, गुप्त, और मुगल काल में यह एक प्रमुख प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा। अकबर ने 1583 में इसका नाम इलाहाबाद रखा और इसे मुगल साम्राज्य का प्रमुख शहर बनाया।
कुंभ का इतिहास
कुंभ मेले की शुरुआत पौराणिक समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है। देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश की प्राप्ति के लिए हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज में कुंभ मेला हर 12 वर्षों में आयोजित होता है, और हर छठे वर्ष “अर्धकुंभ” मनाया जाता है।
मुगल और ब्रिटिश काल में महत्व
अकबर ने प्रयागराज को एक प्रशासनिक केंद्र बनाया और यहां किला बनवाया, जिसमें आज भी “अखंड वट वृक्ष” है। ब्रिटिश काल में इसे इलाहाबाद के नाम से जाना गया और यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन गया।
आधुनिक काल में प्रयागराज और कुंभ
2018 में, इसका नाम पुनः प्रयागराज कर दिया गया। आज प्रयागराज न केवल धार्मिक, बल्कि शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र है। कुंभ मेले को 2017 में यूनेस्को द्वारा “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” का दर्जा दिया गया।
निष्कर्ष
प्रयागराज और कुंभ का इतिहास भारत की प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यह स्थान न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई को भी दर्शाता है।