बिहार के चुनाव में कौन सी पार्टी ने मचाया है हड़कंप?

बिहार की राजनीति हमेशा से देश भर में चर्चा का विषय रही है। यहाँ का हर चुनाव सिर्फ नेताओं की परीक्षा नहीं होता, बल्कि जनता के मूड और दिशा को भी दिखाता है। 2025 के चुनावी माहौल में भी बिहार की सियासत में जबरदस्त गर्मी है — हर पार्टी अपने-अपने वादों, नारे और रणनीतियों के साथ मैदान में है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कौन सी पार्टी ने मचाया है सबसे ज़्यादा हड़कंप? आइए जानते हैं विस्तार से।


🟢 1. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) — तेजस्वी यादव का “रोजगार कार्ड”

इस बार भी बिहार की राजनीति में सबसे ज़्यादा चर्चा में रही राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
तेजस्वी यादव ने युवाओं को केंद्र में रखकर चुनावी मुहिम चलाई। उनका नारा रहा —
“10 लाख सरकारी नौकरियाँ देंगे”,
जो सीधा-सीधा बेरोज़गार युवाओं के दिलों को छू गया।

तेजस्वी ने अपनी सभाओं में लगातार यह मुद्दा उठाया कि “बिहार की असली ताकत उसका युवा है।”
उनकी हर रैली में भीड़ उमड़ी, सोशल मीडिया पर ट्रेंड हुए, और विरोधियों को जवाब देने पर मजबूर कर दिया।
यही वजह रही कि RJD ने इस चुनाव में सचमुच हड़कंप मचा दिया।


🔵 2. जनता दल यूनाइटेड (JDU) — नीतीश कुमार की साख पर सवाल

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली JDU इस बार थोड़ी मुश्किल में दिखी।
हालांकि नीतीश कुमार ने “विकास, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण” को अपनी उपलब्धि बताया,
लेकिन जनता के बीच उनका “गठबंधन बदलने” वाला चेहरा सवालों के घेरे में रहा।

विरोधियों ने उन्हें “पलटी कुमार” कहा, और यह बात सोशल मीडिया से लेकर जनता के बीच तक गूँजती रही।
फिर भी, नीतीश कुमार ने अपनी रैलियों में “सुधरा हुआ बिहार” दिखाकर समर्थन जुटाने की कोशिश की।


🟠 3. भारतीय जनता पार्टी (BJP) — मोदी मैजिक और हिंदुत्व एजेंडा

भाजपा ने इस बार बिहार में अपने प्रचार अभियान को राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों और रोड शो ने माहौल में जोश भर दिया।
“विकसित बिहार, आत्मनिर्भर भारत” का नारा लगाते हुए भाजपा ने
बिजली, सड़क और रोजगार के मुद्दों को उठाया।

हालांकि, कुछ सीटों पर जातीय समीकरणों ने भाजपा को चुनौती दी,
फिर भी पार्टी ने अपने मजबूत संगठन और प्रचार तंत्र के दम पर
राज्य में जबरदस्त प्रभाव बनाया और विरोधियों में हलचल मचा दी।

🟣 5. जनसुराज आंदोलन (Jan Suraj) — प्रशांत किशोर का नया प्रयोग

2025 के बिहार चुनाव की सबसे नई और चर्चित राजनीतिक लहर है —
जनसुराज आंदोलन, जिसे चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) ने शुरू किया है।

प्रशांत किशोर ने “पदयात्रा” के ज़रिए गाँव-गाँव जाकर जनता से सीधा संवाद किया।
उनका नारा है —

> “राजनीति नहीं, व्यवस्था बदलो।”



जनसुराज का फोकस सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि
ग्राम स्तर पर नेतृत्व तैयार करना और ईमानदार शासन मॉडल बनाना है।
युवाओं और पढ़े-लिखे वर्ग में इस आंदोलन को काफी समर्थन मिला है।

हालाँकि जनसुराज अभी पारंपरिक पार्टियों जितना बड़ा संगठन नहीं बन पाया है,
लेकिन इसके विचारों ने राज्य की राजनीति में नया सोच और हड़कंप ज़रूर मचा दिया है।


🔴 4. कांग्रेस और छोटे दल — संघर्ष जारी

कांग्रेस, जो पहले बिहार की राजनीति की धुरी हुआ करती थी,
अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।
हालांकि उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा,
लेकिन उनका प्रभाव सीमित रहा।

वहीं, वीआईपी (Vikassheel Insaan Party) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) जैसे छोटे दल
किंगमेकर की भूमिका में आने की कोशिश में रहे,
लेकिन जनता का ध्यान बड़ी पार्टियों पर ही केंद्रित रहा।


निष्कर्ष :

बिहार के इस चुनाव में अगर किसी ने सबसे ज़्यादा हड़कंप मचाया है,
तो वह है — राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
तेजस्वी यादव ने युवाओं, बेरोज़गारी और शिक्षा जैसे असली मुद्दों को उठाकर
पूरे राज्य में नई राजनीतिक ऊर्जा भर दी है।

हालांकि भाजपा और जेडीयू अभी भी सत्ता की कुर्सी के मजबूत दावेदार हैं,
पर इस बार का माहौल यह साफ़ दिखा रहा है कि
बिहार की राजनीति में युवाओं की आवाज़ अब केंद्र में आ चुकी है।


👉 अंतिम बात:
बिहार का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सोच का भी परिवर्तन दिखा रहा है।
अब जनता यह तय कर रही है कि उसे सिर्फ वादे नहीं,
बल्कि विकास और रोजगार की सच्ची राजनीति चाहिए।
और यही वजह है कि इस बार का चुनाव वाकई —
“हड़कंप वाला चुनाव” साबित हुआ है।