
सरस्वती नदी भारतीय इतिहास, पुराणों और वैज्ञानिक शोधों में विशेष स्थान रखती है। इसे वेदों में एक महान नदी के रूप में वर्णित किया गया है, जो कभी उत्तर-पश्चिम भारत में प्रवाहित होती थी। हालांकि, आज यह नदी भूगोल में दिखाई नहीं देती, लेकिन इसकी मौजूदगी के प्रमाण कई पुरातात्त्विक और वैज्ञानिक शोधों में मिले हैं।
सरस्वती नदी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
1. वेदों में उल्लेख – ऋग्वेद में सरस्वती को एक विशाल और पवित्र नदी बताया गया है, जिसे “नदियों की माँ” भी कहा गया। इसे ज्ञान, विद्या और सभ्यता की जननी माना गया है।
2. महाभारत और अन्य ग्रंथों में वर्णन – महाभारत में सरस्वती नदी को तीर्थयात्रा का पवित्र स्थल बताया गया है। कई संतों और ऋषियों ने इसके तट पर तपस्या की थी।
3. वैज्ञानिक और पुरातात्त्विक प्रमाण – सेटेलाइट इमेजिंग और भूगर्भीय शोधों से पता चला है कि कभी घग्गर-हकरा नदी प्रणाली सरस्वती के रूप में प्रवाहित होती थी। इसके निशान राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में देखे गए हैं।
सरस्वती नदी का लुप्त होना
वैज्ञानिकों के अनुसार, करीब 4000-3000 ईसा पूर्व में जलवायु परिवर्तन, भूकंप और टेक्टोनिक हलचलों के कारण यह नदी धीरे-धीरे सूखने लगी। कुछ शोधों में इसे सिंधु घाटी सभ्यता से भी जोड़ा गया है, क्योंकि हड़प्पा संस्कृति के कई शहर इसके किनारे बसे थे।

सरस्वती नदी और आधुनिक अनुसंधान
भारतीय वैज्ञानिक और सरकार इस प्राचीन नदी के पुनरुत्थान पर शोध कर रहे हैं। हरियाणा और राजस्थान में सरस्वती पुनर्जीवन परियोजना के तहत इसके जल स्रोतों को खोजने का प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष
सरस्वती नदी सिर्फ एक भौगोलिक नदी ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अध्यात्म का प्रतीक भी है। इसके अस्तित्व की खोज न केवल भारतीय इतिहास को नया दृष्टिकोण देगी, बल्कि हमारी सभ्यता की जड़ों को और अधिक गहराई से समझने में भी मदद करेगी।